"हें बघ कोरोना"
करोनाच्या भितीने, घाबरून गेली सर्व जनता,
न खायला आहे, ना प्यायला आहे, सर्वत्र आहे भयानक शांतता
घरात बसून -बसून अस्वस्थ वाटतंय सर्वांना, काळजी पोटी जो तो कॉल करतोय एकमेकांना
बरं बदलत्या जीवन शैलींमुळे ,एकत्र कुटुंबात एवढा वेळ राहायची कोणालाच राहिली नव्हती सवय,
त्यामुळेच का कुणास ठाऊक पण आता घरांत एकमेकांचा बसत नाही आहे मेळ.
कोणाला जास्त वेळ TV जमत नाही तर कोणाला जास्त वेळ झोप,
कोणाला जास्त वेळ गाणे जमत नाही तर कोणाला जास्त वेळ तेच तेच खेळ
परिस्थिती गंभीर आहे, बाहेर पोलिस खंबीर आहे, केलाच कोणी विद्रोह बाहेर जाण्याचा तर मिळतो जबरी चोप, परत वाटत मनाला कीं गपचूप जाऊन झोप.
भिती आहे, रुग्ण संख्या वाढत आहे, परंतु या सर्व भयंकर आणीबाणीत मी मात्रं खंबीरपणे कुटुंबा सोबत घरात सुखरूप आहे.
मग होऊदे कितीही पाऊस आणि घालू दे कोरोना ला त्यांचा उन्माद,
मी आणि माझं कुटुंब घरात सुरक्षित आहे.मग काय डरायची बात.
एक द्यानात ठेव कोरोना जरी आम्ही नसलो चायना, अमेरिका,इटली जपान पण आम्ही भारतवासीं आहोंत,
घरातच बसून आम्हीं सर्व भारतीय तुझी करणार माती आहोंत, तुझी करणार माती आहोंत.
कोरोना मुक्त भारत
Anil Lashkar
Maharashtra
है जो सच वही बता रहे हैं।
अंधेरो में रोशनी जला रहे हैं ।।
जो शादियों से थे आर्थिक लाचार।
उनके ही सपनो को सजा रहे हैं।।
हो अपना समृद्ध भारत यही गा रहे हैं।
हां हम सब इसी में पूरी शक्ति लगा रहे हैं।।
हम हैं सूक्ष्म वित्तीय संस्थान इसलिए बता रहे हैं।
जहां रवि भी न पहुँचे वहां रोशनी ला रहे हैं।।
है नमन उन्हें जो साथ निभा रहे हैं ।
हां हम सब मिलकर शसक्त भारत बना रहे हैं।।
एक दिन ऐसा आएगा हम होंगे सबकी जुबां पर ।
क्योंकि हम समृद्ध भारत की दिशा में जा रहे हैं ।।
है ग्रामीण और कृषि से देश की पहचान ।
इसलिए हम उन्हें निरन्तर सजा रहे हैं ।।
हां हम स्वतंत्र माइक्रो फाइनेंस के बारे में बता रहे ।
है जो सच वही बता रहे हैं ,
है जो सच वही बता रहे हैं।।
राजू यादव(शाखा प्रबंधक अहमदगढ़ पंजाब)
Raju Yadav
Punjab
ये दौर भी गुजर जायेगा
आवाज वो भी एक यतीम की थी
बस कही दूर से आ रही थी
बचा नही था कोई उसका अपना
बेजान सी माँ सामने पडी हुई थी
पूछ रहा था वो मदद को सबसे
सोये हुए दिख रहे थे उसको सारे कबसे
बेपरवाह हो गई इन्सानियत भी उस दीन
लाचारी देख खुद्द की रो रही थी कहीसे
वो दौर ही कुछ ऐसा आया था
साथ वो ढेर सारी मुसीबते लाया था
बात कर रही थी उस दीन की दादी
जब प्लेग को उसने करीब से देखा था
बेघर हो गयी थी हजारों की आबादी
हो रही थी सब तरफ बरबादी
फेके गये थे तब भी पत्थर
कूच थे जो लढ रहे थे छोड के अपना घर
सबके लिए जीनाका अपणो से साथ छुटा था
ना कोई बायबल ना कुराण ना गीता
बस एक सिपही बैद और डॉक्टर ही काम आता था
अब क्या करू बाते इस कोविड की
घट तो नही रही भीड लोगो की ,
निकलने मत देना अपणो को घर से
वक्त नही लगेगा आणे में उस दौर को फ़िरसे
याद रखना सिखना हैं बहोत कुछ
इन्सानियत को समजणा बहोत खूब
दौर हैं ये गुजर ही जायेगा
आने वाला कल कुछ अच्छे पल लायेगा
बहोत दुखाया होगा कुद्रात को हमने
इसलिये कोई इलाज नही मिल रहा
आया हैं ऐसेही चला जायेगा
ये दौर हैं साहब बस गुजर जायेगा
निशांत देशमुख
बिझनेस रिक्रुटर , महाराष्ट्र